हनुमान मंत्र | Hanuman Mantra


मनोजवं मारुततुल्यवेगम्।
जितेन्दि्रयं बुद्धिमतां वरिष्थम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं।
श्री रामदूमं शरण प्रपद्ये।।

अर्थात : जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्दिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवनपुत्र वानरों में प्रमुख श्रीरामदूत की मैं शरण लेता हूं। कलियुग में हनुमानजी की भक्ति से बढ़कर किसी अन्य की भक्ति में शक्ति नहीं है। रामरक्षा स्तोत्र से लिए गए हनुमानजी के प्रति शरणागत होने के लिए इस श्लोक या मंत्र का जप करने से हनुमानजी तुरंत ही साधक की याचना सुन लेते हैं और वे उनको अपनी शरण में ले लेते हैं।

जो व्यक्ति हनुमानजी का प्रतिदिन ध्यान करते रहते हैं, हनुमानजी उनकी बुद्धि से क्रोध को हटाकर बल का संचार कर देते हैं। हनुमान भक्त शांत चित्त, निर्भीक और समझदार बन जाता है।



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