वन्दे हं शीतलां देवी रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्।।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्।।
इस मंत्र का अर्थ यह है कि दिगंबरा, गर्दभ वाहन यानी गधे पर विराजित, शूप (सूपड़ा), झाड़ू और नीम के पत्तों से सजी-संवरी और हाथों में जल कलश धारण करने वाली माता को प्रणाम है।
शीतला माता के सामने के बैठकर इस मंत्र का जाप 108 बार करें और देवी से परेशानियां दूर करने की प्रार्थना करें।
शीतला माता का स्वरूप
ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी चेचक का उपचार शीतला माता के पूजन और विभिन्न उपायों से किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। इस रोग किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि शीतला माता गधे की सवारी करती हैं, उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप (सूपड़ा) रहते हैं और वे नीम के पत्तों की माला धारण किए रहती हैं। शीतला माता के इसी स्वरूप में चेचक रोग का इलाज बताया गया है।
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